एक चुप सौ सुख - Ek chup saw sukh

 एक चुप सौ सुख  

एक गांव में रामू नाम का एक जमींदार रहता था। वह बहुत मेहनती था और दिनभर खेतों में काम करता था। उसकी पत्नी, सरला, घर का सारा काम संभालती थी। दोनों की शादी को कुछ साल हो चुके थे, लेकिन उनके बीच अक्सर छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होते रहते थे। दोनों ही गुस्से के तेज थे, इसलिए किसी की भी गलती हो, बहस लंबी चलती थी। कभी-कभी तो बात इतनी बढ़ जाती कि सरला का बनाया हुआ खाना भी फेंकना पड़ता था।  

एक दिन सरला अपने मायके चली गई। वहां उसकी मुलाकात उसकी एक बूढ़ी चाची से हुई। चाची बहुत समझदार और दुनियादारी की जानकार थीं। बातचीत के दौरान सरला ने उन्हें अपने घर की परेशानी बताई, "चाची, रामू हर बात पर गुस्सा करते हैं। जरा-सी बात पर लड़ाई शुरू हो जाती है। मैं कुछ बोलती हूं तो और भड़क जाते हैं। इससे हमारा घर का माहौल भी खराब हो जाता है और कई बार तो बना-बनाया खाना भी बेकार चला जाता है।"  

चाची मुस्कुराईं और बोलीं, "बेटी, ये तो कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा बहुत से घरों में होता है। लेकिन मेरे पास तुम्हारी समस्या का एक पक्का इलाज है।"  

सरला उत्सुक होकर बोली, "कैसा इलाज, चाची?"  

चाची अंदर गईं और एक छोटी शीशी लेकर आईं। उन्होंने सरला को वह शीशी देते हुए कहा, "इसमें एक खास दवा है। जब भी तुम्हारा पति गुस्से में हो और लड़ाई करने लगे, तो इस दवा की कुछ बूंदें मुंह में रख लेना। मगर ध्यान रहे, जब तक उसका गुस्सा शांत न हो जाए, तब तक इसे मुंह से बाहर मत निकालना और कुछ भी मत बोलना। देखना, जादू जैसा असर होगा!"  

सरला ने चाची की बात गांठ बांध ली और घर लौट आई।  

दवा का असर  

अगली बार जब रामू किसी बात पर गुस्सा हुआ और लड़ाई करने लगा, तो सरला को चाची की दवा याद आई। उसने झट से शीशी खोली, उसमें से कुछ बूंदें मुंह में रख लीं और चुपचाप खड़ी रही। रामू थोड़ी देर तक चिल्लाता रहा, लेकिन जब सरला ने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसका गुस्सा खुद-ब-खुद ठंडा पड़ गया और वह चुप हो गया।  

यह देखकर सरला को बड़ा अचंभा हुआ! उसने सोचा, "वाकई, चाची की दवा तो कमाल की चीज़ है।"  

अगले कुछ दिनों तक जब भी रामू गुस्से में आता, सरला वही दवा मुंह में रख लेती और चुपचाप खड़ी रहती। धीरे-धीरे रामू का गुस्सा कम होने लगा और घर में शांति रहने लगी।  

राज़ खुला  

कुछ दिनों बाद सरला अपनी चाची के पास फिर से गई और खुशी-खुशी बोली, "चाची, आपकी दवा ने कमाल कर दिया! अब हमारे घर में झगड़े बहुत कम हो गए हैं। आप तो सच में जादू जानती हैं। प्लीज़, मुझे बताइए कि इस दवा में क्या-क्या डाला था, ताकि मैं इसे खुद बना सकूं। बार-बार आपके पास आना मुश्किल होता है।"  

चाची हंस पड़ीं और बोलीं, "बेटी, उस शीशी में कुछ भी खास नहीं था। उसमें सिर्फ़ साफ़ पानी था!"  

सरला चौंक गई, "क्या? सिर्फ़ पानी?"  

चाची ने समझाया, "हां बेटी, असली दवा पानी नहीं, बल्कि तुम्हारी चुप्पी थी। जब तुमने कुछ नहीं कहा, तो तुम्हारे पति का गुस्सा खुद ही शांत हो गया। झगड़ा तभी बढ़ता है जब दोनों तरफ से बहस होती है। अगर एक इंसान चुप रह जाए, तो दूसरा भी ज्यादा देर तक गुस्सा नहीं कर सकता। इसी को कहते हैं— 'एक चुप, सौ सुख।'"

सरला को अपनी गलती समझ आ गई। उसने चाची का धन्यवाद किया और मन ही मन ठान लिया कि आगे से जब भी झगड़े की नौबत आएगी, वह अपनी चुप्पी से हालात को संभालेगी। अब उसका घर पहले से ज्यादा शांत और खुशहाल हो गया था।

• ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक हैं 

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